कृष्ण मोहन का आलेख 'काव्य शास्त्र विनोद'
काव्यशास्त्रविनोद-३ आलोचना के बारे में कृष्ण मोहन आजकल हिंदी में आलोचना की निंदा करने और उसे अनावश्यक ठहराने का चलन है। इस काम में हवा के साथ बह जाने वाले मतदाताओं जैसी सादगी के साथ बहुत से साहित्यप्रेमी लगे हुए हैं। लेकिन असल में यह खेल उन मठाधीशों का है जिन्होंने अतीत में हमेशा आलोचकों के साथ द…